इस लेख में डिप्रेशन को दूर करने से संबंधित प्रेमानंद जी के कथनों,विचारों व उनके प्रवचनों को जानेंगे।उन्होंने डिप्रेशन होने का कारण व इससे बाहर निकलने के उपाय बड़ी ही सहजता से हमारे समक्ष रखे हैं। प्रेमानंद जी के अनुसार डिप्रेशन मात्र हमारा व्यर्थ का चिंतन है और इस व्यर्थ के चिंतन से मुक्त होकर डिप्रेशन को दूर किया जा सकता है।
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प्रेमानंद जी के अनुसार, डिप्रेशन क्या है?
डिप्रेशन का अर्थ, मनःशक्ति का कमजोर होकर व्यर्थ के चिंतन या overthinking में डूबना है। बिना आत्म सुख मिले मन प्रश्न नहीं होता। डिप्रेशन हमारी इच्छाओं का भंडार है। जितनी अधिक कुछ पाने की इच्छाएं होंगी ,वहां उतना ही चिंता, डिप्रेशन, अतिचिंतन जैसे विकार उत्पन्न होंगे। जहां हमारा मन आनंदमय नहीं वहां डिप्रेशन और overthinking का जन्म होना तय है। "तब लगि कुसल न जीव कहुँ, सपनेहुँ मन बिश्राम। जब लगि भजत न राम कहुँ, सोक धाम तजि काम॥" सब कुछ है फिर भी डिप्रेशन है, अर्थात आपके पास वो नहीं है जो होना चाहिए।वो नहीं किया जो करना चाहिए।वो नहीं पाया जो पाना चाहिए। ये सब हमारे मन का खेल है, एक बार खुद के मन में झांक के देखो।तुमने उसे वो सब कुछ दिया जो उसने मांगा। जिससे उसे खुशी मिली वो सब किया। इतना करने के बाबजूद फिर भी मन आज खाली है।आज तक वो अधूरा ही है।वह आज फिर कहेगा ये भोग लूं,ये चख लूं ,ये चीज खा लूं ,ये चीज देख लूं परंतु आज तक विश्राम नहीं मिला और यह केवल और केवल भगवान के होने पर मिलेगा।
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डिप्रेशन व ओवरथिंकिंग को कैसे दूर करें?- प्रेमानंद जी महाराज।
प्रेमानंद जी ने डिप्रेशन व ओवरथिंकिंग को दूर करने का एकमात्र उपाय नाम जप माना है। वो कहते हैं तुम नाम जप जब तक नहीं करोगे ,भगवान के प्रति श्रृद्धा नहीं रखोगे तुम्हारे मन को शांति नहीं मिल सकती। मन तुम्हे बार -बार उन्हीं भोगों की ओर ले जाएगा जिन्हें तुम शांति की चाह में वर्षों से भोगे चले आ रहे हो।तुम्हारा चिंतन कहां है ,तुम्हारे अंदर क्या चल रहा है।तुम अपने अंदर बैठे भगवान को नहीं पहचान पाए तो दुनिया के किसी भी मंदिर चले जाओ तुम्हे डिप्रेशन से मुक्ति नहीं मिल पाएगी।अपने अंदर के आध्यात्म को पहचानो,अपने अंदर बैठे भगवान को पहचानो,जिस दिन तुम खुद के अंतर्मन को पहचान जाओगे । तुम्हारे मन को शांति अवश्य ही मिल जाएगी। तुम्हारे अंदर चिंतन क्या चल रहा है भोगों, व्याभिचार का चिंतन रखोगे और पशुता की भांति व्यवहार करोगे, तो कैसे भगवान का चिंतन कर सकोगे। दो चेहरे होते हैं लोगों के और जिसका एक चेहरा होता है जो अंदर आचरण है और वही बाहर है वो महात्मा होता है।जब अंदर बैठे राक्षसी आचरण का कर्म आता है तो डिप्रेशन पैदा होता है। डिप्रेशन पाप का कर्म है। शरीर अगर अस्वस्थ है उसका कुछ नहीं बिगड़ा,यदि शरीर स्वस्थ है और दिमाग में पाप भरा है तो सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं रहेगा। दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए ही अध्यात्म है।नाम जप करो, शास्त्रों का स्वाध्याय करो, संतों का संघ करो। डिप्रेशन क्षणभर में दूर हो जाएगा।कितने ऐसे भाई बंधु है जिन्होंने सत्संग सुनकर डिप्रेशन से मुक्ति पा ली,जिन्हें नींद की दवाई खाके नींद आती थी, उन्होंने आज औषधियों का उपयोग बंद कर दिया। डिप्रेशन मस्तिष्क का कैंसर होता है जो धीरे-धीरे हमारी सोचने,समझने की शक्ति को नष्ट करता जाता है।
क्या भोगों से डिप्रेशन हटाया जा सकता है?- प्रेमानंद जी महाराज
भोग केवल हमारे राक्षसी मन की मांगे हैं। यह खुद को खुश करने के लिए हमसे नानाप्रकार के भोगों जैसे - शराब, मांस, व्यभिचार आदि की मांगे करता है और हमे ऐसा प्रतीत कराता है जैसे इनके सेवन से हमारे मस्तिष्क में बैठा डिप्रेशन दूर हो जाएगा।जो की असंभव है। डिप्रेशन केवल भगवान के भजन से, साधु- संतों के प्रवचनों से व पवित्र मन चिंतन से दूर हो सकता है। भोग केवल राक्षसी प्रवृति को जन्म देते हैं। जितना तुम इनका अनुसरण करोगे,ये तुम्हारे मस्तिष्क को मानसिक विकारों का धाम बनाते जाएंगे।ये तुम्हारे मस्तिष्क को नकारात्मकता का स्रोत बना देंगे।ये तुम्हारे कामनाओं को उन ऊंचाइयों तक ले जाएंगे जहां से वापस आने का केवल एकमात्र रास्ता है जो कि मृत्यु से होकर गुजरता है।
"तब लगि कुसल न जीव कहुँ, सपनेहुँ मन बिश्राम। जब लगि भजत न राम कहुँ, सोक धाम तजि काम॥"का अर्थ क्या है?
अर्थ- जीव अर्थात प्राणी, मनुष्य कुशल नहीं हो सकता उसके सपने में भी शांति नहीं मिल सकती है, जब तक वह शोक के धाम अर्थात काम, वासना जैसी बुराइयों का त्याग कर भगवान राम के भजन नहीं करता।
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