इस लेख में हम क्रोध पर विजय प्राप्त करने संबंधी प्रेमानंद महाराज जी के विचारों व उनके कथनों को पढ़ेंगे। उन्होंने क्रोध को मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन बताया है।साथ ही कैसे कोई व्यक्ति इस पर विजय प्राप्त कर सकता है,उन उपायों को हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे।
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Premanand maharaj ji |
क्रोध कैसे शांत करें? - प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद जी ने क्रोध पर विजय प्राप्त करने का सबसे बड़ा उपाय भगवान का नाम जप बताया है।वो कहते हैं की अधिक से अधिक भगवान का नाम जप करने से हमारे अंदर बसने वाली नकारात्मक सोच सकारात्मकता में बदल जाती हैं। किसी महिला के द्वारा प्रश्न पूछने पर की - "मुझे छोटी-छोटी बातों में जल्दी गुस्सा क्यों आ जाता है और यही गुस्सा बड़ी लड़ाई में बदल जाता है।" इसका उत्तर देते समय उन्होंने हमारे अंदर पल रही नकारात्मक सोच को जिम्मेदार माना है।प्रेमानंद जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने सोच को शुद्ध कर ले वह नकारात्मकता में भी सकारात्मकता को खोज लेगा। उसे कोई गाली भी देता है तो भी वह उस गाली में अपना मंगल सोचेगा।उसे प्रसन्नता होगी की मेरे प्रभु ने अतीत की गलतियों के लिए मुझे दंड दे दिया बजाय किसी शारीरिक दंड के। वहीं नकारात्मकता से भरा व्यक्ति इसी बात को सोचने में अपना काफी समय बर्बाद कर देगा की उसने मुझे ऐसा क्यों बोला,और धीरे-धीरे उसके मन में बदला लेने की भावनाएं जागृत होने लगेंगी।वह उसको शारीरिक चोट पहुंचाने की सोचने लगेगा,बिना किसी परिणाम के सोचे वह ऐसा कदम उठाने को तत्पर हो जाएगा जिसका परिणाम उसके लिए घातक सिद्ध हो सकता है।एक नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति से कुछ न बोलने पर भी वह हमारे प्रति सोच रख लेगा कि उसने मुझसे बात नहीं की, वह बिना मुझसे बात करे चला गया ,बड़ा गुमान भर गया है उसके अंदर आदि जैसे कई नकारात्मक सोच अपने अंदर ले आएगा और पूरा दिन इसी में उलझा रहेगा। वहीं एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति सोचेगा की उसने मुझसे बात नहीं की कहीं मैने कोई गलत व्यवहार तो नहीं कर दिया उसके साथ, कोई परेशानी तो नहीं टूट पड़ी उसके ऊपर। इसलिए प्रेमानंद जी ने हमारी सोच को ही गुस्से का सबसे बड़ा कारण माना है।नकारात्मक सोच के बदले सकारात्मक सोच को सर्वोपरि रखना ही हमारे गुस्से को शांत कर सकता है। आवश्यकता से अधिक गुस्सा हमेशा अहितकारी ही रहा है। मनुष्य के अंदर गुस्से का पनपना आम बात है परंतु इसका सही जगह इसका उपयोग करना ही एक गुणी मनुष्य की पहचान है।
क्रोध क्यों आता है?- प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद महाराज जी ने क्रोध आने का प्रमुख कारण हमारे अंदर पनप रहीं कामनाओं को माना है।प्रेमानंद जी कहते हैं- "हमें क्रोध तब आता है जब हमारी कामना में विघ्न पड़ता है। क्रोध की कोई सत्ता नहीं है वह कामना से पैदा होता है।" अर्थात किसी मनुष्य को क्रोध तभी आता है जब उसे मनचाही चीज हांसिल नहीं होती। क्रोध का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता। इसकी उत्पत्ति केवल हमारी इक्षाओं व असीमित कामनाओं से होती है। "कामा संजायते क्रोधा" अर्थात कामना से ही क्रोध उत्पन्न व विकसित होता है। कामनाएं कई प्रकार की हो सकती हैं वह किसी वस्तु को पाने की या खुद के प्रति किसी के अच्छे व्यवहार की भी हो सकती है। किसी सज्जन ने जब प्रेमानंद महाराज जी से पूछा की- हमें क्रोध क्यों आता है? इसका उत्तर उन्होंने बड़ी ही सहजता और सरल शब्दों में दिया -"हमें किसी के प्रति क्रोध इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि हम यह देखते हैं की उसका कर्तव्य हमारे लिए क्या हैं, बजाय इसके की हमारे कर्तव्य उसके लिए क्या - क्या हैं।" जैसे ही हमें यह एहसास होने लगता है की वह अपना कर्तव्य नहीं निभा रहा उसी क्षण से हमारे अंदर उसके प्रति क्रोध उत्पन्न होने लगता है।
गुस्सा आने पर क्या करें? - प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद महाराज जी ने गुस्सा आने के बाद किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए इसके लिए उन्होंने कहा है कि - "जब गुस्सा आ जाए उसी समय मौन हो जाओ,क्योंकि गुस्सा का सबसे पहला काम है कटु वचन बोलना,गाली देना। इसको राधा,राधा,राधा,राधा....नाम से चुप कर दो।" प्रेमानंद जी ने ठीक ही कहा है ,जब हमें गुस्सा आता है यदि उस समय अपनी वाणी पर विराम लगा दिया जाए तो बड़ी-से बड़ी कटुता को क्षणभर में ही नष्ट किया जा सकता है। गुस्से के समय अपनी वाणी पर संयम न रखना ही रिश्तों के बीच दरार आने का कारण है।वर्तमान समय में पति-पत्नी जैसे पवित्र बंधन के टूटने में जरा-सा समय भी नहीं लगता।इसका कारण क्या है- हमारा बेलगाम गुस्सा।इस बंधन में बंधते समय वो सात फेरों के साथ सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाते हैं परंतु सात जन्मों की बात दूर रही यह जन्म काटना मुश्किल हो जाता है।
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