खुश कैसे रहें?- प्रेमानंद जी महाराज

 इस लेख में हम प्रेमानंद जी द्वारा सुझाए गए उन मार्गों के बारे में जानेंगे । जिनके अनुसरण से बुरी से बुरी परिस्थितियों में भी हम खुश रहना सीख जाएंगे। प्रेमानंद जी ने ऐसे कई उपाय सुझाए हैं,जिससे हमारे मन-मस्तिष्क से खुश कैसे रहें? जैसा उठने वाला प्रश्न हमेशा के लिए चला जाएगा।

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खुशी क्या है?- प्रेमानंद जी

हमारे द्वारा किए गए प्रत्येक कर्म के पीछे खुशी पाने की चाह रहती है।इस दुनिया में प्रत्येक इंसान अपने जीवन में खुशी के पीछे भागता है और इसकी चाह में वह कठिन परिश्रम करता है। परंतु अपने लक्ष्य को हांसिल करने के बाद भी क्या हम खुश हैं।यह प्रश्न आपको खुद से एक बार जरूर करना चाहिए। प्रेमानंद जी कहते हैं-"किसी भी परिस्थिति में प्रसन्न रहना ये सबसे बड़ी कला है और ये केवल भगवान से जुड़ने में ही होगी,दूसरी जगह नहीं होगी। ये आनन्द रुपया में नहीं मिलेगा,ये आनन्द भोगों में नहीं मिलेगा,ये आनन्द अच्छे मकान बनाने में नहीं मिलेगा,ये आनन्द केवल भगवान के होने पर मिलेगा।" भोगों और खुशी में अंतर हमें समझना होगा। मानों आज हम खुद के लिए बड़ी से बड़ी कार खरीद भी लें।लेकिन उस कार में  अपने माता-पिता को घुमाने में शर्म महसूस कर रहे हों।फिर ये खुशी,खुशी नहीं रह गई। माता-पिता भगवान का रूप होते हैं।जिस दिन तुम उस कार में अपने माता-पिता को बैठा के कही ले जाते हो उस समय उनके चेहरे में जो खुशी की चमक होगी,वह खुशी तुम्हारे कई जन्मों की बुराइयों को नष्ट कर देगी।


खुश कैसे रहें?-प्रेमानंद जी

अक्सर हमें ग्लानि रहती है कि मेरे पास पैसा नहीं है,मकान नहीं है,अच्छी कार नहीं है और इनके अभाव में दुःखी होते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए प्रेमानंद जी कहते हैं- "पागल तेरी समझ में नहीं आ रहा सुख का समुद्र तेरे पास है।बाहर भटकने से क्या होगा तुम्हे राम नाम प्रिय है कृष्ण नाम प्रिय है हरि नाम प्रिय है राधा नाम प्रिय है जप के तो देखो,तुम्हारे अंदर इतना माल भरा है की आंखे खोलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी"  ये सब मोह-माया का जाल है जितना हम इसमें अपनी खुशी की तलाश करेंगे ये हमें और पीड़ा पहुंचाती रहेगी।जिनकी सामर्थ्य है इन भोगों को भोगने की वो भी कुछ समय के पश्चात इनसे ऊबकर इससे अच्छे की तलाश में निकल पड़ते हैं और यह तलाश कभी खत्म नहीं होती। यहीं से मनुष्य के दुख का प्रारंभ होता है। जिनकी सामर्थ्य इन्हें भोगने की नहीं है वो रोज यही आश लगाए बैठा रहता है की एक दिन मेरे पास भी ये सब कुछ होगा और रोज दूसरों को देखकर खुद के मन को दुःखी करता रहता है। "समुद्र में मीन प्यासी मोये सुन सुन आवे हांसी" अर्थात प्रेमानंद जी कहते हैं कि अगर समुद्र में रहने वाली मछली कहे कि वह पानी की प्यासी है यह व्यंग्य के अलावा कुछ नहीं हो सकता।उसी प्रकार हमारे अंदर भी सुख का सागर है जरूरत है उसे पहचानने की उसको बाहर निकालने की और यह तभी संभव है जब हम धर्म पूर्वक रहकर मांस-मदिरा और गंदे आचरणों को त्याग कर भगवान के नाम से जुड़ जाएं। हम खुशी को पाने के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं।पूरी दुनिया धन के पीछे भाग रही है जिससे उसे वह हर चीज या वस्तु प्राप्त हो सके जो उसे खुशी की अनुभूति करा सके।परंतु क्या जो वह चाहते हैं वह प्राप्त होने के बाद उन्हें हमेशा के लिए खुशी मिल सकती है? नहीं,वह खुशी क्षणभंगुर होगी। मानों आज हम जैसा मकान चाहते हैं उससे भी बड़ा मकान बनवा लेते हैं,क्या यह मकान की खुशी जीवन भर रहेगी। यह मात्र कुछ समय की होगी इसके बाद उसमें कई कमियां दिखने लगेंगी।जबकि उसको बनवाते समय सारी कमियों को दूर व जरूरतों के हिसाब से पूरा किया गया था। हमें माया और सुख के अंतर को समझना होगा।जो मिल गया उसमें और बेहतर ढूंढना माया है और मिलने के बाद उसी में खुश रहना यही हमारी जीवनभर की खुशी का कारण बनेगी।


खुश कैसे रहें? प्रेमानंद जी के कथन!!

  • हर परिस्थिति में प्रसन्न रहना सबसे बड़ी कला है और ये भगवान से जुड़ने में होगी।
  • आनन्द तुम्हे रुपया से नहीं मिलेगा,आनन्द तुम्हे अच्छे मकान बनाने में नहीं मिलेगा,आनन्द तुम्हे नाना प्रकार के भोगों से नहीं मिलेगा,ये केवल भगवान के चरणों में मिलेगा।
  • हर समय मन को प्रसन्न रखो और मन को प्रसन्न वही रख सकता है जिसे भगवान का भरोसा है और जिसे भगवान का भरोसा है वह आनंदित है।

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